अयाेध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि की नई पहचान हाेगी- ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’। 70 एकड़ में फैले इस परिसर काे सरकारी दस्तावेजों में यही नाम दिया जा रहा है। 5 अगस्त काे प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी के हाथाें भूमि पूजन से पहले मंदिर निर्माण के लिए विभिन्न विभागों से एनओसी और परमीशन की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। अयोध्या विकास प्राधिकरण में मंदिर के नक्शे की फाइल मंजूरी के अंतिम चरण में है।

मंदिर के नए मॉडल के साथ पूरे 70 एकड़ क्षेत्र के विकास का लैंडस्केप भी तैयार है। तमाम जरूरी सुविधाओं और ग्रीन बेल्ट के बीच तीन तल के मंदिर में रामदरबार सजेगा। पूरा परिसर हाईटेक सिटी की तरह हाेगा। यह क्षेत्र अयोध्या का उपनगर कहलाएगा। यहां राेज एक लाख श्रद्धालुओं के आने के लिहाज से सुविधाएं होंगी। पूरा परिसर साैर ऊर्जा से जगमगाएगा।

67.7 एकड़ बताई जा रही भूमि नापजोख के बाद 70 एकड़ मिली। इसके दायरे में तीन राजस्व ग्राम की भूमि आती है। ये गांव हैं, ज्वालापुर, रामकोट और अवधखास। मंदिर का गर्भगृह रामकोट में है, लेकिन अब पूरी भूमि काे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की नई पहचान दी गई है।

मंदिर, परिक्रमा और पंचदेव मंदिर छह एकड़ में बनेंगे

मंदिर और उससे जुड़े परिक्रमा पथ और पंचदेव मंदिरों का क्षेत्र करीब 6 एकड़ होगा। गर्भगृह और रामदरबार का मुंह पूर्व की ओर होगा। दरबार हाल से सीधे हनुमानगढ़ी के दर्शन होंगे। 5 शिखर वाले मंदिर के निर्माण पर करीब 300 करोड़ रुपए खर्च हाेंगे। फर्श ग्रेनाइट पत्थरों से बनेगा। मंदिर के आसपास अन्य सुविधाएं विकसित करने का खर्च अलग रहेगा। मंदिर का नक्शा पास करवाने के लिए 2 करोड़ रु. फीस देनी हाेगी।

मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल की बात झूठ: चंपत राय

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने उन मीडिया रिपाेर्ट्स काे गलत बताया है, जिनमें कहा गया है कि राम मंदिर निर्माण से पहले जमीन में दो हजार फुट की गहराई में धातु के बक्से में ‘टाइम कैप्सूल’ गाड़ा जाएगा। उन्हाेंने मंगलवार काे कहा कि पिछले दो दिन से टाइम कैप्सूल रखने की खबरें चल रही हैं। यह दावा मनगढ़ंत है। उन्होंने अपील की कि श्रीराम जन्मभूमि के संदर्भ में केवल अधिकृत बयान काे ही सही मानें।



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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने उन मीडिया रिपाेर्ट्स काे गलत बताया है, जिनमें कहा गया है कि राम मंदिर निर्माण से पहले जमीन में दो हजार फुट की गहराई में धातु के बक्से में ‘टाइम कैप्सूल’ गाड़ा जाएगा।

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