जम्मू-कश्मीर की धार्मिक संस्थाओं में होने वाली फंडिंग को अब तक शक की निगाह से देखा जाता रहा है। लेकिन, आतंकवाद शुरू होने से पहले ही इन संस्थाओं में बीमारों के इलाज के लिए आर्थिक मदद करने की परंपरा चली आ रही है।

घाटी के 900 से ज्यादा गांवों में बीमारों के लिए पैसा जुटाया जाता है। यहां डेथ कमेटियां भी बनी हैं, जो उन घरों का चार दिनों तक पूरा खर्च उठाती हैं, जहां किसी की मौत हुई हो। इस नेक काम में कई बार स्थानीय पुलिस भी लोगों की मदद करती है।

व्यक्ति कमाई का कुछ हिस्सा हर शुक्रवार जरूर दे जाता था

जोकू खारियन गांव के पूर्व सरपंच और मौलवी मोहम्मद मकबूल ने बताया कि बीमार की मदद के लिए कुरआन शरीफ और मुस्लिम शरीफ में कहा गया है। इसलिए हमारे यहां पहले यह काम मस्जिदों के जरिए होता था। व्यक्ति कमाई का कुछ हिस्सा हर शुक्रवार जरूर दे जाता था। लेकिन, आतंकवाद के बीच कुछ मस्जिदों में इस धन-संग्रह पर प्रशासन ने कड़ाई की, तो लोगों ने खुद मदद करनी शुरू की और परंपरा को आगे बढ़ाया। आज सभी गांवों में यह चलन है।

इलाज के लिए पैसे इकट्‌ठा करने की परंपरा यहां पुरानी है- बडगाम एसपी

बडगाम एसपी अमोद अशोक नागपुरे बताते हैं कि बीमार के इलाज के लिए पैसे इकट्‌ठा करने की परंपरा यहां पुरानी है। मस्जिद और औकाफ कमेटी के लोग मदद जुटाते हैं। डेथ कमेटियां भी अच्छा काम कर रही हैं। मृतक के कफन-दफन से लेकर परिवार के खाने-पीने का खर्च यही कमेटियां उठाती हैं। सरपंच या किसी अन्य की सूचना पर हम भी एंबुलेंस सहित अन्य इंतजाम करने की कोशिश करते हैं।

5 दशकों में मदद का यह सिलसिला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है

साहित्यकार जरीफ अहमद जरीफ कहते हैं कि 5 दशकों में मदद का यह सिलसिला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है। अब गांव के सरपंच या बुजुर्ग व्यक्ति के जरिए बीमार व्यक्ति का परिवार मदद मांगता है और बाकी लोग उसके इलाज के लिए आर्थिक सहयोग करते हैं। मदद की यह परंपरा अब शहरों तक पहुंच गई है, लेकिन प्रारूप बदल गया है।

शहर के मोहल्लों में छोटी-छोटी कमेटियां बनी हैं। इनमें मोहल्ले के लोग ही जरूरतमंद की मदद करते हैं। लॉकडाउन में तो ऐसी कमेटियां चार गुना तक बढ़ गईं। श्रीनगर में ही इनकी संख्या 50 से ज्यादा हो गई हैं।

चंद दिनों में लाखों रुपए जुट जाते हैं
जोकू खारियन गांव के इरशाद अहमद के कैंसर के इलाज के लिए गांव वालों ने दो दिन में 5 लाख रुपए तो लारकीपुरा के कैंसर पीड़ित इमरान के लिए 8 लाख रुपए जुटाए। इसी तरह संगलीपुरा केे गुलाम मलिक के इलाज के लिए भी छह दिन में 4 लाख रुपए इकट्ठा किए गए।



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शहर के मोहल्लों में छोटी-छोटी कमेटियां बनी हैं। इनमें मोहल्ले के लोग ही जरूरतमंद की मदद करते हैं। लॉकडाउन में तो ऐसी कमेटियां चार गुना तक बढ़ गईं।

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