जॉर्ज की मिनियापोसिल में हत्या के बाद अमेरिका में हो रही घटनाओं को कई दृष्टिकोणों से देख सकते हैं। लेकिन मेरे हिसाब से देश अपनी स्थापना से जुड़े मोटो (नीति-वाक्य) पर दोबारा विचार की प्रक्रिया में है, जो अमेरिका की सील पर है: ‘आउट ऑफ मैनी, वन’ (कई को मिलाकर एक)।
मैं कहूंगा कि अब हमारा मोटो ‘कई में से कोई नहीं’ हो रहा है और मुझे डर है कि यह ‘कई में से सिर्फ मैं’ हो जाएगा। अगर हम 21वीं सदी में आगे बढ़ना चाहते हैं तो इसे ‘कई को मिलाकर हम’ बनाने की जरूरत है।
मुझे यह महसूस हुआ है कि मिनियापोलिस के अच्छे और बुरे पहलू उस व्यापक राष्ट्रीय संघर्ष के करीब हैं, जो यह समझने की कोशिश कर रहा है कि आज हमारा मोटो क्या होना चाहिए। कई को मिलाकर एक? कई में से कोई नहीं? कई में से सिर्फ मैं? कई को मिलाकर हम?
मैं मिनियापोलिस के नॉर्थसाइड में पैदा हुआ। यह उन यहूदियों और अश्वेतों की बस्ती थी, जिन्हें नस्लवाद और यहूदी-विरोध के जरिए अकेल छोड़ दिया गया था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बड़ी संख्या में नॉर्थसाइड के यहूदी सैंट लुइस पार्क चले गए। इस तरह उस इलाके में 20% यहूदी भी हो गए।
इस बीच अफ्रीकी-अमेरिकी नस्लवाद से दबते रहे और नॉर्थसाइड से बाहर नहीं निकल पाए। जब सेंट लुइस पार्क में 1971 में मेरी हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी हुई तो 800 बच्चों की कक्षा में केवल 2 अफ्रीकी-अमेरिकी थे। पश्चिम मध्य मिनेसोटा के विलमार शहर में मेरी एक आंटी रहती थीं। कई सालों तक उन्होंने और दो यहूदी परिवारों ने विलमार की ‘विविधता’ बनाए रखी, जहां ज्यादातर श्वेत ईसाई ही रहते थे।
हाईस्कूल के बाद मैं मिनेसोटा से बाहर निकला। फिर 2015 में जब यहां लौटा तो पाया कि दुनिया अब सैंट लुइस पार्क और विलमार को जानती है। तब तक सैंट लुइस पार्क हाई स्कूल में 58% श्वेत, 27% अश्वेत, 9% लातिनी, 5% एशियाई और 1% नेटिव अमेरिकी हो गए थे। 2019 में विलमार पहुंचा तो पाया कि 21,000 की आबादी में आधी जनसंख्या लातिनी, सोमाली और अन्य अफ्रीकी, एशियाई देशों के शरणार्थियों की थी।
कोई भ्रम मत पालिएगा। आवश्यकता समावेशन की जननी थी। विलमार को कुशल कामगारों की जरूरत थी। लेकिन अक्सर दीवार सबसे पहले इसी तरह टूटती है। आज मिनेसोटा में जो शहर विविधता नहीं बना पा रहे हैं, वे जानते हैं कि वे खत्म हो जाएंगे। और वे विलमार और सैंट लुइस पार्क जैसी जगहें देख रहे हैं, जहां बहुत से नस्लीय मुद्दे है, लेकिन वे विविधता लाकर आगे बढ़ रहे हैं।
इससे मैं एक बार फिर राष्ट्रीय मोटो पर आता हूं। यह कहना आसान था, ‘कई को मिलाकर एक’, क्योंकि तब ‘कई’ श्वेत और यूरोपीय थे, वहीं श्वेत और ब्राउन अल्पसंख्यक थे और औपचारिक-अनौपचारिक रूप से ‘एक’ का बराबर हिस्सा नहीं थे। लेकिन सैंट लुइस पार्क और विलमार साबित करते हैं कि मिनेसोटा जैसा राज्य भी अब ज्यादा विविधतापूर्ण है।
दुर्भाग्य से, विविधता का यह नया स्तर हमारी ताकत की जगह लकवे का कारण बन गया है। हम ‘कई में से कोई नहीं’ पर पहुंच गए। इस लकवे से कई दक्षिणपंथी तीसरे मोटो पर आ गए, ‘कई में से सिर्फ मैं’ या जैसा कि डोनाल्ड ट्रम्प ने कभी दावा किया था, ‘मैं अकेले सब ठीक कर दूंगा।’ ट्रम्प मानते हैं कि वे कार्यकारी शक्ति खत्म कर इस लकवे से बाहर ला सकते हैं। रूस, चीन, हंगरी, तुर्की और ब्राजील में भी नेता उन जैसी सत्तावादी सोच रखते हैं।
अमेरिका तभी अमेरिका बना रहेगा, जब हमारा मोटो बनेगा, ‘कई को मिलाकर हम’। यह इस बात को मान्यता देता है कि ‘हम लोग’ पहले से ज्यादा विविध हैं और विविधता में बहुत लचीलापन, नयापन, रचनात्मकता हो सकती है। लेकिन विविधता को फिर से अमेरिका की शक्ति बनाना इस पर आधारित नहीं हो सकता कि श्वेत, अश्वेतों के प्रति ‘सहिष्णु’ होना सीखें। सहिष्णुता जरूरी है लेकिन ‘कई को मिलाकर हम’ के लिए हम सभी रंगों के लोगों को अनेकता के प्रति गहरी प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
हर समुदाय के योगदान की सराहना और शब्दाडंबर से परे जाकर सभी के लिए स्कूल, शासन और पुलिसिंग की उपलब्धता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता। हेरीटेज फाउंडेशन की पहली अफ्रीकी-अमेरिकी और पहली महिला प्रमुख ‘के कोल्स जेम्स’ कहती हैं, ‘यह अमेरिका के लिए जिम्मेदारी लेने और सभी नागरिकों तक इंसानी खुशहाली पहुंचाने का समय है।’
कट्टर श्वेत ऐसे विविध अमेरिका में रहने से डरते हैं और इसलिए वे ट्रम्प को बनाए रखना चाहते हैं, चाहे वे कुछ भी करें। और इसीलिए वे रिपब्लिकन पार्टी को किसी भी गलत-सही तरीके से सत्ता में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह मजबूत अमेरिका के लिए स्थायी रणनीति नहीं है।
हमें एक स्वस्थ रूढ़ीवादी पार्टी की जरूरत है, जो विविधता को अपनाए लेकिन इसका पूरा लाभ उठाने के रूढ़ीवादी सिद्धांत भी दे। रिपब्लिकन पार्टी लगातार बड़े मार्जिन से राष्ट्रीय वोट को खोकर केवल पैंतरेबाजी से राष्ट्रपति पद बनाए रखने के प्रयास नहीं कर सकती। अगर यह जारी रहा तो अमेरिका बिखर जाएगा। और हमारी कब्रों के पत्थरों पर लिखा होगा, ‘कई में से सिर्फ कुछ अंश और टुकड़े’। हम ऐसा नहीं होने दे सकते।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
https://ift.tt/2YG9Nzt
إرسال تعليق