मेरठ में जन्मेंथोरेसिक स्पेशलिस्टडॉक्टर अंकित भरत के नेतृत्वमें पहली बार किसीकोरोना मरीज के दोनों फेफड़ेट्रांसप्लांट किए गए हैं। अमेरिका के शिकागो के नार्थ-वेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में किए गए इस काम की इसलिए चर्चा है क्योंकिकोरोनावायरस सबसे पहले फेफड़ों को ही निशाना बनाता है।
उनके हॉस्पिटल में यह सर्जरी 5 जून को की गई थी लेकिन मरीज की कंडीशन के तमाम पहलुओं को देखते हुए इसकी सफलता की घोषणा एक हफ्ते बाद की गई। हॉस्पिटल ने इसे एक माइलस्टोन बताया है।
दुनियाभर के वैज्ञानिक भारत के एक डॉक्टर परिवार के बड़े बेटेअंकित को बधाई देते हुए इस सर्जरी को इसलिए महत्वपूर्ण बता रहे हैं क्योंकि इसके बाद वेंटिलेटर पर तड़प रहे गंभीर रोगियों को ट्रांसप्लांट के जरिये बचाने की उम्मीद जगी है। हर साल करीब 50 लंग ट्रांसप्लांट करने वाले डॉक्टर अंकित के पास दुनियाभर से कॉल आ रहे हैं और ऐसे ट्रांसप्लांट की चाह रखने वालेमरीजों की लिस्ट लम्बी होती जा रही है।
शिकागो केहॉस्पिटल के लंग्स ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के डायरेक्टर और सर्जन डॉक्टरअंकित भरत ने दैनिकभास्कर की ओर से भेजे गएसवालों के जवाब दिए। उन्होंने बताया, सर्जरी कितनी चुनौतीभरी रही और कोरोना महामारी को लेकरवह भारत की वर्तमान स्थिति को किस नजरिए से देखते हैं।
बातचीत से पहले 4 पांइट मेंपूरा केस
- नॉर्थ वेस्टर्न हॉस्पिटल में 26 अप्रैल से भर्ती संक्रमित युवती कोविड आईसीयू की सबसे बीमार मरीज थी। उसे20 से भी कम उम्र में कोरोना ने इस तरह जकड़ लिया था किबचने की उम्मीद बहुत कम थी।
- वायरस के कारण फेफड़ों मेंइतना नुकसान हो चुका था कि उनकाठीक होना संभव नहीं था। तमाम विकल्प आजमाने के बादडॉक्टर अंकित और उनकीटीमने उसके फेफड़े ट्रांसप्लांट करने का फैसला लिया।
- डॉक्टर अंकित की सहयोगीडॉक्टरबेथ मालसिन ने बताया कि हमें दिन-रात यह देखना होता था कि उसके सभी अंगों तक पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंच रही है या नहीं ताकि ट्रांसप्लांट के दौरान वे ठीक रहे।
- इसके बाद जैसे ही उसकीकोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई, हमनेट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू कर दी। 48 घंटे बादफेफड़ों को ट्रांसप्लांट कर दिया। 10 घंटे तक चली यह सर्जरीसफल रही और अब मरीज रिकवरी स्टेज में है।
अबसवाल -जवाब
#1) ये सर्जरी इतनी महत्वपूर्ण क्यों बताई जा रही है? क्या आगे कोरोना के कारण मौत की कगार पर पहुंचे मरीजों के लिए जीवनदायक हो सकती है?
डॉक्टर अंकित:हां, ऐसा हो सकता है क्योंकि एक बार जब आपकाशरीर सक्षम हो जाता है तो वायरस को निकाल बाहर फेंकता है। और, इस तरह के लंग ट्रांसप्लांट की मदद से वे मरीज वेंटिलेटर से वापस लौट सकते हैं जिनकेफेफड़ों कोकोरोना वायरस के कारण गंभीर नुकसान पहुंच चुका होता है।
#2) अगर मरीज के दोनों फेफड़े खराब हैं तो लंग ट्रांसप्लांटेशन में सबसे बड़ा चैलेंज क्या है?
डॉक्टर अंकित:ऐसे में सबसे बड़ा चैलेंज उस मरीज की बीमारी होती है और ये देखना होता है कि वो किस स्टेज पर है। आमतौर पर, ऐसे गंभीर मरीजों को हफ्तों तक नली लगाकर ऊपर से सांस देनी होती है क्योंकि वे बहुत कमजोर हो जाते हैं। ऐसे मामलों में मरीज के दूसरे अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है और उनकी भी काम करने की क्षमता कम होती जाती है।
इसीलिए, ऐसे मरीजों में ट्रांसप्लांटेशन करना बहुत चैलेंजिंग काम होता है।इस सर्जरी में उम्र बहुत मायने रखती है क्योंकि हमें मरीज की इम्यूनिटी और रिकवरी की संभावनाओं के हिसाब से ये बेहद पेचीदा सर्जरी करनी होती है। मैचिंग डोनर का वक्त पर मिलना भी एक बड़ा चैलेंज है।
#3) कोरोना से जूझने में भारत की स्थिति और तैयारियों को आप कैसे देखते हैं?
डॉक्टर अंकित:यकीनन, ये दौर दुनिया के हर देश के लिए बहुत मुश्किल है और मैं कहूंगा कि जो हालात हैं उनको देखते हुए भारत बहुत अच्छा कर रहा है। मुद्दे की बात ये है कि अभी भी ये स्पष्ट नहीं है कि हमारे पास पब्लिक हेल्थ पॉलिसीज क्या होनी चाहिए क्योंकि ये वायरस अब जाने वाला तो नहीं है।
इससे आज भी लड़ना है और आने वाले कल में भी। हालांकि, अगर लोग अपने घर और कम्युनिटी के स्तर पर हाइजीन और बचाव की बुनियादी नियमों का पालन करेंगे तो इस वायरस के प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
#4) अमेरिका में रहकर आपने कोरोना के संकट को बहुत करीब से देखा है, भारत सरकार और भारतवासियों को कोई खास मैसेज देना चाहेंगे?
डॉक्टर अंकित:मुझे लगता है कि देश में एकता बनाए रखने, हाइजीन और मेडिकल रिसर्च के प्रमाणों को लेकर लोगों को जागरूक करने बतौर मीडिया हाउस आप लोग और सरकार बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मैं ये भी सोचता हूं कि बतौर एक सोसायटी के रूप में हमें पर्सनल हाइजीन को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी खुद ही लेनी होगी और तभी हम कोविड-19 और भविष्य में होने वाली किसी भी ऐसी महामारी को फैलने से रोक पाएंगे। मैं यही मैसेज देना चाहता हूं कि हमें एक होकर लड़ना होगा, क्योंकि सामूहिक प्रयासों और सबके एक साथ आए बिना इस वायरस से जीतना संभव नहीं लगता।
#5) आप मेरठ से हैं और क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ें हैं, यूपी से शिकागो तक की यात्रा में भारत याद आता है?
डॉक्टर अंकित:हां, बिल्कुल। रोज याद आता है। भारत में पैदाइश और बड़े होने की यादें बहुत गुदगुदाती है। यहां अमेरिका में भारत का स्वादिष्ट और देसी खाना बहुत याद आता है।
मेरठ से अमेरिका तक के सफर के 5पड़ाव
- 1980 में मेरठ में जन्में डॉ. अंकित भरत ने 10वीं की पढ़ाई 1995 में मेरठ छावनी के सेंट मेरीज एकेडमी से की और डीपीएस आरकेपुरम से वर्ष 1997 में 12वीं की पढ़ाई पूरी की।
- वेल्लोरके मशहूर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करके 2003 में इंटर्नशिप करने के बाद नई तकनीक सीखनेअमेरिका गए और फिर वहीं बस गए।
- कॅरिअर के शुरुआती दिनों बतौर रेजिडेंट काम करने के बाद 2013 में नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में बतौर प्रोफेसर के पद पर नौकरी ज्वाॅइन की।
- थोरेसिक सर्जन डॉ अंकित भरत नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में ही लंग्स ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के डायरेक्टर बने। उन्हेंपिछले साल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की ओर से अमेरिका की सबसे बड़ी17 करोड़ रुपए की आरओ-1 ग्रांट मिली है।
- उनके पिता डॉ. भरत गुप्ता सुभारती मेडिकल कॉलेजके बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर व एचओडी हैं और अंकित की मांडॉ. विनय भरत भी वहीं पैथोलॉजी विभाग में प्रोफेसर हैं। उनके छोटे भाईडॉ.अंचित भी अमेरिका के इंडियाना पोलिस स्टेट स्थित वेल्स मेमोरियल अस्पताल में फिजिशियन हैं।
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