भारत ने पिछले साल चीन को 3,839 करोड़ रुपए मूल्य कालोहा और स्टील निर्यात किया था। वहीं, चीन से 11,958 करोड़ रुपए मूल्य के स्टील के बने सामान आयात किए गए थे। ये बहुत छोटा सा उदाहरण यह समझाने के लिए पर्याप्त है कि भारत और चीन के बीच होने वाला व्यापार चीन की ओर क्यों झुका हुआ है।
दरअसल, भारत चीन को अधिकतर कच्चा माल या सेकंडरी माल का निर्यात करता है, वहीं चीन हमें विनिर्मित वस्तुएं बेचता है। ऐसे में चीन के सामान की वैल्यू अधिक होती है। दोनों देशों की ओर से एक-दूसरे को निर्यात की जाने वाली टॉप-10 वस्तुओं को देखें तो तस्वीर और साफ हो जाती है।
टॉप-10 निर्यात होने वाली वस्तुओं में से 9 विनिर्मित वस्तुएं होती हैं
चीन की ओर से भारत को निर्यात होने वाली टॉप-10 वस्तुओं में से 9 विनिर्मित वस्तुएं होती हैं। चीन के भारत के निर्यात में इन टॉप-10 वस्तुओं की हिस्सेदारी करीब 78.8 फीसदी है। वहीं, भारत की ओर से चीन को निर्यात किए जा रहे टॉप-10 समानों में से आधे कच्चे माल हैं। भारत के ओर से चीन को होने वाले कुल निर्यात में इन वस्तुओं की हिस्सेदारी करीब 72 फीसदी है।
चीन से हमारा आयात तो 45 गुना बढ़ालेकिन निर्यात में अधिक इजाफा नहीं हुआ
विशेषज्ञों की मानें तो इन्हीं विसंगतियों के चलते पिछले 20 सालों में चीन से हमारा आयात तो 45 गुना बढ़ गया लेकिन निर्यात में अधिक इजाफा नहीं हुआ। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में भारत का चीन को निर्यात 1.10 लाख करोड़ रुपए था और आयात 4.40 लाख करोड़ रुपए रहा।
मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है। चीन अभी भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अमेरिका इस मामले में पहले स्थान पर है।
स्टार्टअप: पिछले साल 23 डील साइन की, अब तक 35 हजार करोड़ का निवेश
चीन ने भारत के टेक स्टार्टअप में तेजी से निवेश करना शुरू किया है। पिछले साल चीन ने भारत के टेक स्टार्टअप के साथ 23 डील साइन की और 500 करोड़ डॉलर (35 हजार करोड़ रु.) का निवेश किया। हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है।
यूनिकॉर्न स्टार्टअप उस कंपनी को कहते हैं, जिसकी वैल्यूएशन 100 करोड़ डॉलर (7,600 करोड़ रु.) या इससे अधिक होती है। इनमें पेटीएम, जौमेटो, बायजू और ओला जैसे बड़े नाम हैं।
चीन से टॉप-10 आयात
विद्युत मशीनरी और उपकरण, और टीवी, मशीन,परमाणु रिएक्टर, बॉयलर; उसके पुर्जे,जैविक रसायन, प्लास्टिक और उससे बने सामान, उर्वरक, लोहे या स्टील के सामान, ऑप्टिकल, फोटोग्राफिक, सिनेमैटोग्राफी उपकरण, मेडिकल उपकरण। वाहन और उसके पुर्जे और सहायक उपकरण, विविध रासायनिक उत्पाद, लोहा और इस्पात।
चीन काे टॉप-10 निर्यात
जैविक रसायन, खनिज तेल,अयस्क, लावा और राख,मछली, कपास, प्लास्टिक और उसके लेख, मशीनरी, यांत्रिक उपकरण, विद्युत मशीनरी, नमक, सल्फर चना और सीमेंट, लोहा और इस्पात।
दवा निर्यात में हम शीर्ष देशों में लेकिन लिए चीन पर निर्भर
दवा निर्यात में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है, लेकिन इसके लिए ज्यादातर कच्चा माल चीन से आता है। भारत की दवा बनाने वाली कंपनियां करीब 70 फीसदी एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट्स (एपीआई) चीन से आयात करती हैं।
साल 2018-19 के वित्तीय वर्ष में देश की फर्मों ने चीन से 240 करोड़ डॉलर मूल्य की दवाइयां और एपीआई आयात किए। देश का दवा निर्यात 2018-19 में 11 प्रतिशत बढ़कर 1920 करोड़ डॉलर हो गया है। इसमें चीनी एपीआई पर बड़ी निर्भरता है।
सौर ऊर्जाः90% मार्केट पर चीनी कंपनियों का कब्जा। देश में सौर ऊर्जा का मार्केट साइज 37,916 मेगावाट का है, जिसमें चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 90% है।
स्टीलःदेश में स्टील का मार्केट साइज 108.5 मिलियन मीट्रिक टन का है, जिसमें चीनी माल की हिस्सेदारी 18-20% है। कुछ उत्पादों के लिए चीन की कीमत के बराबर के उत्पाद खोजना मुश्किल होगा।
देश में ज्यादातर पॉवर प्लांट चीन से आयात किए जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भेल दुनिया के सबसे बेहतर पॉवर प्लांट बनाने में सक्षम है। बशर्ते इसे पूरी तरह से स्वायत्तता दी जाए। यह आत्मनिर्भर भारत के लिए कमाल कर सकती है।
- अनिल अग्रवाल, एक्जीक्यूटिव चेयरमैन, वेदांता
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